बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

Kanya Bhrun Hatya Essay in Hindi

संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी का जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है. अन्य प्राणियों की तो छोड़ो आज तो बेटियों की जिंदगी कोख में ही छीनी जा रही है. "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं. ऐसा शास्त्रों में लिखा है किन्तु बेटियों की दिनोदिन कम होती संख्या हमारे दौहरे चरित्र को उजागर करती है. 

माँ के गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जाती है तब वह बचने के कितने जतन करती होगी यह माँ से बेहतर कोई नहीं जानता. गर्भ में 'माँ मुझे बचा लो ' की चीख कोई खयाली पुलाव नहीं है बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है. अमेरिकी पोट्रेट फिल्म एजुकेशन प्रजेंटेशन ' The Silent Scream ' एक ऐसी फिल्म है जिसमे गर्भपात की कहानी को दर्शाया गया है. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह गर्भपात के दौरान भ्रूण स्वयं के बचाव का प्रयास करता है. गर्भ में हो रही ये भागदौड़ माँ महसूस भी करती है. अजन्मा बच्चा हमारी तरह ही सामान्य इंसान है. ऐसे मैं भ्रूण की हत्या एक महापाप है. 

वह नन्हा जीव जिसकी हत्या की जा रही है उनमे से कोई कल्पना चावला, कोई पी. टी. उषा, कोई स्वर कोकिला लता मंगेशकर तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थी. कल्पना चावला जब अन्तरिक्ष में गयी थी तब हर भारतीय को कितना गर्व हुआ था क्योंकि हमारे भारत को समूचे विश्व में एक नयी पहचान मिली थी. सोचो अगर कल्पना चावला के माता पिता ने भी गर्भ में ही उसकी हत्या करवा दी होती तो क्या देश को ये मुकाम हासिल करने को मिलता ? 

जीवन की हर समस्या के लिए देवी की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या जन्म को अभिशाप मानता है और इस संकीर्ण मानसिकता की उपज हुयी है दहेज़ रुपी दानव से. लेकिन दहेज़ के डर से हत्या जैसा घ्रणित और निकृष्ट कार्य कहाँ तक उचित है ? अगर कुछ उचित है तो वह है दहेज़ रुपी दानव का जड़मूल से खात्मा. एक दानव के डर से दूसरा दानविक कार्य करना एक जघन्य अपराध है और पाशविकता की पराकाष्ठा है. 

हिंसा का यह नया रूप हमारी संस्कृति और हमारे संस्कारों का उपहास है. नारी बिना सृष्टि संभव नहीं है. ऐसे में बढ़ते लिंगानुपात की वजह से वह दिन दूर नहीं जब 100 लड़कों पर एक लड़की होगी और वंश बेल को तरसती आँखे कभी भी तृप्त नहीं हो पायेगी. 

Rakesh Mishra

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